गोरखपुर अस्पताल में गयी निर्दोष मासूमों की मौतों के संदर्भ में उनके माता-पिता का दर्द :
मेरा दिल भी उस मातम से सेहर जाता है
हां मेरी आँखों में वो मंज़र नजर आता है ....
बददुआ मेरी ये लाचार हुकूमत न रहे
शर्म आती है इसपे, दोगली सियासत न रहे
मुझे उन दुधमुहीं जिंदगानियों का ख्याल आता है
हां मेरी आँखों में वो मंज़र नजर आता है।
उजाला करने से पहले ही दिये बुझते रहे
मेरी आँखों के तारे पल में बिखरते रहे
मुझे इन बेजुबां नौनिहालों का ख्याल आता है
हां मेरी आँखों में वो मंज़र नजर आता है।
ख्वाब अच्छे दिनों के रोज यहाँ बुनते रहे
सौदे इंसानियत रोज यहाँ करते रहे
मुझे उस माँ की सूनी गोद का ख्याल आता है
हां मेरी आँखों में वो मंज़र नजर आता है।
सिरफिरी आँखों से जम-जम के अश्क बहते रहे
मेरे चरागों से मेरे ही घर जलते रहे
मुझे उन सिसकियों की खामोशी का ख्याल आता है
हां मेरी आँखों में वो मंज़र नजर आता है ........................(स्वरचित)